पैसों और कई तरह के कार्ड्स से भरा पर्स पैंट या जीन्स की पीछे वाली पॉकेट में रखना ज्यादातर पुरुषों की आदत होती है। मगर यही छोटी सी आदत गंभीर बीमारी पैदा कर सकती है, जिससे चलना-फिरना, उठना-बैठना दूभर हो सकता है।
हाल ही में हैदराबाद के 30 साल के एक व्यक्ति को एक बीमारी हुई। शुरुआत में उसने कोई छोटी-मोटी नस की परेशानी समझकर इसे अनदेखा कर दिया, लेकिन परेशानी और दर्द बढ़ता गया। उसे करीब तीन महीने तक दाहिने नितंब से लेकर पैर और पंजों तक तेज दर्द होता रहा। कई तरह की दवाएं और इलाज लेने के बाद भी राहत नहीं मिली। बाद में जांच करने पर डॉक्टर को पता चला कि उसे ‘फैट वॉलेट सिंड्रोम’ था।
फैट वॉलेट सिंड्रोम से पीड़ित उस व्यक्ति को खड़े होने या चलने की तुलना में बैठने या लेटने पर ज्यादा तेज दर्द होता था। उस व्यक्ति की एमआरआई समेत कई तरह की जांच की गई, जिसमें उसे रीढ़ की हड्डी या पीठ के निचले हिस्से में नसों पर दबाव या संकुचन होने जैसी कोई शिकायत नहीं थी। इसके बाद उसका नर्व कंडक्शन (नसों में होने वाले नुकसान का पता लगाने वाली जांच) किया गया। इस जांच में डॉक्टरों ने पाया कि उस व्यक्ति की दाहिनी साइटिक नर्व को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचा था। पर यह फिर भी पता नहीं चल सका कि साइटिक नर्व में हुए नुकसान का कारण क्या था।
उस व्यक्ति ने अपने डॉक्टर को बताया कि वह हमेशा पैंट या जींस के पीछे की दाहिनी तरफ पैसों और कार्ड्स जैसी चीजों से लदा भारी पर्स रखता था, जो 10 लगभग घंटे तक ऑफिस में रहने के दौरान भी उसकी जेब में रखा रहता था। इसके बाद डॉक्टरों को पता चला कि उस भारी पर्स की वजह से उस व्यक्ति की पिरिफोर्मिस मसल (मांसपेशी) दब गई थी, जिस वजह से रीढ़ की हड्डी से पैर तक जाने वाली साइटिका नस पर भी दबाव पड़ रहा था। फैट वॉलेट सिंड्रोम होने पर कई बार सीधे साइटिका नस पर भी दबाव पड़ सकता है और मरीज को और भी तेज दर्द हो सकता है।
यह साइटिक तंत्रिकाओं से संबंधित एक डिसॉर्डर है। साइटिका एक नस होती है जो रीढ़ की हड्डी से होते हुए कुल्हे और पैर की एड़ी तक जाती है। इस डिसॉर्डर में कूल्हों (हिप्स) और नितंबों (बटॉक) में दर्द होने लगता है। पिरिफोर्मिस सिंड्रोम तब होता है जब पिरिफोर्मिस मांसपेशी साइटिका नस को दबाने लगती है, जिसकी वजह से कई बार अंगों में सूजन तक होने लगती है। यह नितंब और पैर के पिछले हिस्से में दर्द या सुन्नता पैदा कर सकता है। यह दर्द शरीर के एक तरफ या दोनों तरफ हो सकता है।
डाक्टर सलाह देते हैं कि बैठते या गाड़ी चलाते समय पर्स को पिछली जेब में रखने की बजाय इसे सामने की जेब, जैकेट या शर्ट में रखें। इससे पीठ के निचले हिस्से पर तनाव नहीं पड़ेगा और बैठने में कोई दिक्कत महसूस नहीं होगी। अगर पिछली पॉकेट में ही पर्स रखना है तो उसका भार कम कर दिया जाए। पर्स जितना हल्का होगा, उसे कैरी करने में उतनी ही आसानी होगा।
पर्स पीछे की जेब में रखने वाले हर एक व्यक्ति को यह परेशानी नहीं होती है, लेकिन किसी को ऐसा होता है तो सबसे पहले मरीज की नर्व कंडक्शन के जरिए जांच होती है। अगर पर्स की वजह से सियाटिक नर्व में दिक्कत हो रही है, तो डाक्टर बैक पॉकेट में भारी पर्स ना रखने की सलाह देते हैं। दर्द को दूर करने के लिए एंटी-इंफ्लेमेटरी और पेन किलर दी जाती है। मसल स्ट्रेचिंग जैसी एक्सरसाइज भी मरीज को जल्दी राहत मिल सकती है।
