व्यभिचारी सैनिकों पर आर्मी एक्ट में ही कार्रवाई

सशस्त्र बलों में व्यभिचार पर आर्मी एक्ट के तहत कार्रवाई जारी रहेगी। व्यभिचार के लिए सशस्त्र कर्मियों/ अफसरों के खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है, इसके लिए सशस्त्र बल के जवानों का कोर्ट मार्शल किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने रक्षा मंत्रालय की अर्जी पर यह स्पष्टीकरण दिया है। कोर्ट द्वारा 2018 में रद्द  की गई आईपीसी की धारा 497 का फैसला आर्मी एक्ट पर लागू नहीं होगा।

पांच जजों के संविधान पीठ ने कहा कि इस अदालत के 2018 के फैसले का आर्मी एक्ट से कोई संबंध नहीं था। हमने केवल व्यभिचार को अपराध के रूप में रद्द किया था। उस समय अदालत ने आर्मी एक्ट की धारा 45 (अशोभनीय आचरण) और धारा 63 ( आदेश और अनुशासन का उल्लंघन) की व्याख्या करने के लिए नहीं कहा गया था।

रक्षा मंत्रालय ने व्याभिचार को अपराध की श्रेणी से बाहर करने वाले सुप्रीम कोर्ट के 2018 के फैसले से छूट मांगी थी। मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों के संविधान पीठ से कहा कि धारा 497 को रद्द करने के बाद रक्षा कर्मियों के बीच व्याभिचार के मामलों में बढ़ोतरी हुई है। रक्षा मंत्रालय सेना अधिनियम के प्रावधानों के तहत सशस्त्र कर्मियों पर मुकदमा चलाना जारी रखना चाहता है। क्योंकि नैतिक अधमता के कृत्यों का वर्दीधारी पेशे में कोई स्थान नहीं है। व्याभिचार के लिए कोर्ट मार्शल किए गए सेना अफसर अब व्याभिचार को अपराध की श्रेणी से बाहर करने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दे रहे हैं। अधिकारियों द्वारा अनुशासन का उल्लंघन राष्ट्रीय सुरक्षा को भी खतरे में डाल सकता है।

सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों के संविधान पीठ के सामने रक्षा मंत्रालय की ओर से पेश वरिष्ठ वकील व एएसजी माधवी दीवान ने कहा, वो सेना अधिनियम के प्रावधानों के तहत व्यभिचार के लिए सशस्त्र कर्मियों पर मुकदमा चलाना जारी रखना चाहते हैं। अशोभनीय आचरण के लिए उनका कोर्ट मार्शल होता है और सुप्रीम कोर्ट द्वारा इसे अपराध की श्रेणी से बाहर किए जाने के बावजूद वो सुप्रीम कोर्ट द्वारा प्रतिबंधित प्रावधान के तहत नहीं है। रक्षा मंत्रालय का मानना है कि ये वर्दीधारी पेशे हैं, जहां नैतिक अधमता का कोई स्थान नहीं है। अधिकारियों द्वारा अनुशासन का उल्लंघन राष्ट्रीय सुरक्षा को भी खतरे में डाल सकता है। दोषी अधिकारियों की धारणा यह है कि वे अब अनुशासनात्मक कार्रवाई के अधीन नहीं हैं, क्योंकि धारा 497 को सुप्रीम कोर्ट ने खत्म कर दिया है और व्यभिचार को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया गया है। हमें जो चिंता है वह मामलों की बाढ़ है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा व्यभिचार को अपराध की श्रेणी से बाहर किए जाने के बाद एएफटी में कई मामले लंबित हैं। बहुत अराजकता है। जिस क्षण किसी पर आरोप पत्र दायर किया जाता है, अधिकारी- जोसेफ शाइन के फैसले का हवाला देते हुए आरोपों को रद्द करने के लिए आवेदन करता है। धारणा यह है कि उन्हें दंडित नहीं किया जा सकता है। उनका बचाव यह है कि आप अप्रत्यक्ष रूप से वह नहीं कर सकते जो आप सीधे नहीं कर सकते। हम रक्षा बलों में और अधिक महिलाओं को लेने जा रहे हैं। इसलिए इस अदालत से एक स्पष्टीकरण आवश्यक है। क्योंकि अधिक से अधिक महिलाएं पुरुषों के साथ काम करने जा रही हैं और उन्हें नई वास्तविकता से परिचित होना होगा।

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