बिहार के बुजुर्ग साहित्यकार भोलानाथ आलोक ने अपनी पत्नी के प्रेम में जो किया है वैसा शायद ही किसी ने किया हो। उन्होंने इच्छा जताई थी उनके निधन पर उनकी पत्नी का अस्थि कलश उनके शव पर रखकर दाह संस्कार किया जाए। ऐसा इसलिए ताकि उनका प्रेम अजर अमर रहे।
भोलानाथ की जैसी इच्छा थी, वैसा ही हुआ। जब उनका निधन हुआ तो उनकी इच्छा पूरी की गई। पूर्णिया के 90 वर्ष के बुजुर्ग साहित्यकार भोलानाथ आलोक की पत्नी पद्मा रानी का निधन 25 मई 1990 को हो गया था। इसके बाद 32 सालों तक भोलानाथ ने अपनी पत्नी के प्यार की निशानी के रूप में उनका अस्थि कलश सिपाही टोला स्थित अपने घर में आम के पेड़ में लटकाए रखा। वह प्रतिदिन अपनी पत्नी के अस्थि कलश पर गुलाब का फूल चढ़ाते और अगरबत्ती दिखाकर प्रणाम करते थे।
भोलानाथ आलोक कहा करते थे कि जब उनकी पत्नी का निधन हुआ था, तभी उन्होंने लिखित संकल्प लिया कि जिस दिन उनका निधन होगा, तब उनकी पत्नी का अस्थि कलश उनके शव की छाती पर रखकर दाह संस्कार किया जाएगा, ताकि उनका प्रेम अजर अमर रहे। भोलानाथ आलोक के दामाद अशोक सिंह बताते हैं कि आज के समय लोग क्या प्यार और समर्पण का भाव रखते हैं। मेरे ससुर का प्यार और पत्नी (सास) के प्रति समर्पण हमें सीख देता है। पत्नी के मरने के बाद तक उनके अस्थि कलश की पूजा करते रहे। मरने के बाद उनकी इच्छा पूरी की गई।
अशोक कहते हैं कि जमाने की नजर में भले ही बाबू जी की मौत के साथ दोनों की प्रेम कहानी का अंत हो गया हो, लेकिन सच कहें तो इस प्रेम कहानी का नया अध्याय शुरू हो गया। बाबू जी की मौत के बाद उनकी और मां की अस्थियों को सम्मिश्रित कर हमने उसी आम के पेड़ पर बांधकर रख दिया, जहां बाबू ने मां की अस्थियों को रखा था। बाबू जी अब इस दुनिया में नहीं, मगर बाबू जी के उस परंपरा को अब हमने कायम रखा है। घर के सभी सदस्य इस स्थान पर मत्था टेक कर ही घर में आते हैं या फिर बाहर जाते हैं। अस्थियों की पोटली देखकर हमें महसूस होता है कि वे हमारे पास ही हैं और ये पवित्र प्रेम कहानी जैसे फिर से लिखी जा रही है।
