नवंबर 2019 में सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय पीठ द्वारा अयोध्या के राम मंदिर पर ऐतिहासिक फैसल सुनाया था। इसके बाद राम मंदिर बनना शुरू हुआ और अब यह पूरा होने के करीब है। इसबीच पांच सदस्यी पीठ में शामिल चार जज रिटायर्ड हो गए। सिर्फ डीवाई चंद्रचूड़ अभी सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश हैं।
खास बात यह है कि चारों रिटायर्ड जज वर्तमान में अहम पदों पर विराजमान हैं। केन्द्र की मोदी सरकार ने इन्हें नई जिम्मेदारी सुप्रीम कोर्ट से रिटायर होने के कुछ समय बाद ही सौंप दी। जबकि भाजपा के ही दिवंगत नेता एवं केन्द्र में वित्त व कानून मंत्री रहे अरुण जेटली ने इस तरह की नियुक्ति को अनुचित बताया था। उस पीठ में भारत के पूर्व चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस शरद अरविंद बोबडे, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ (अभी के सीजेआई), जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस. अब्दुल नजीर शामिल थे। इनमें से जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस बोबडे, जस्टिस भूषण और जस्टिस नजीर रिटायर्ड होने के बाद अब अहम पदों पर हैं।
न्यायाधी एस. अब्दुल नजीर इसी साल 4 जनवरी को रिटायर हुए औऱ एक महीने बाद 12 फरवरी को उन्हें आंध्र प्रदेश का राज्यपाल बना दिया गया। अब्दुल नजीर कर्नाटक के रहने वाले हैं। वहीं, अयोध्या विवाद पर फैसला सुनाते समय चीफ जस्टिस रहे रंजन गोगोई 17 नवंबर, 2019 को रिटायर्ड हुए। उसके चार महीने बाद ही उनको तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने राज्यसभा के लिए मनोनीत कर दिया। उन्होंने 19 मार्च, 2020 को राज्यसभा सदस्य के रूप में शपथ ली।
इसी प्रकार जस्टिस अशोक भूषण 4 जुलाई 2021 को सुप्रीम कोर्ट से रिटायर्ड हुए औऱ चार महीने बाद ही 24 अक्टूबर 2021 को केंद्र सरकार ने उन्हें राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण (एनसीएलएटी) का अध्यक्ष बना दिया। जस्टिस शरद अरविंद बोबडे का सुप्रीम कोर्ट में आठ साल का कार्यकाल रहा। वह भी 23 अप्रैल, 2021 को चीफ जस्टिस पद से रिटायर्ड हुए। रिटायर होने के बाद उन्होंने कोई आधिकारिक सार्वजनिक पद तो नहीं संभाला, लेकिन महाराष्ट्र नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी, मुंबई और महाराष्ट्र नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी, नागपुर के चांसलर हो गए।
जजों के रिटायर होकर अन्य नियुक्ति पाने पर स्वर्गीय अरुण जेटली ने कहा था, मेरी राय है कि जज के रिटायरमेंट के बाद नई नियुक्ति के लिए दो साल का गैप होना चाहिए। नहीं तो सरकार प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से अदालतों को प्रभावित कर सकती है। इस तरह देश में स्वतंत्र, निष्पक्ष न्यायपालिका का सपना कभी हकीकत नहीं बन पाएगा। इसस पहले 5 सितंबर, 2013 को भी अरुण जेटली ने राज्यसभा में में कहा था, कुछ अपवादों को छोड़ कर लगभग हर कोई रिटायरमेंट के बाद जॉब चाहता है। अगर संसद इसकी व्यवस्था नहीं करें तो वे खुद कर लेंगे। रिटायरमेंट के बाद पद पाने की इच्छा रिटायरमेंट से पहले के फैसलों को प्रभावित करती है। यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता के लिए खतरा है।
