हाल ही में लिव-इन में रह रही महिलाओं औऱ लड़कियों की निर्मम हत्या के मामले सामने आने के बाद ये बहस छिड़ गई है कि ऐसे संबंध में रहना लड़कियों के लिए कितना सुरक्षित है। यह मामला अब सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल कर लिव इन में रहने वाले जोड़ों का पंजीकरण अनिवार्य करने तथा सरकार को कड़े नियम व गाइडलाइन बनाने के आदेश देने की मांग की गई है। नियमों पर अमल सुनिश्चित करने का मेकेनिज्म विकसित करने की भी प्रार्थना की गई है।
लिव इन रिलेशनशिप में लगातार बढ़ते धोखे, झांसे और हिंसक अपराधों को रोकने के लिए ये याचिका दाखिल की गई है। याचिका में कहा गया है कि श्रद्धा, निक्की यादव जैसी अब कोई और नहीं होनी चाहिए। वकील ममता रानी की ओऱ से दायर की गई जनहित याचिका में विवाह की तरह ही लिव इन रिलेशन में रह रहे जोड़ों का पंजीकरण अनिवार्य करने की गुहार लगाई गई है। याचिका में कहा गया है कि महिलाओं की सुरक्षा और अधिकारों के संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट अपने पिछले आदेशों को और ज्यादा विस्तार देते हुए पीड़ित या असंतुष्ट पक्षकार के तौर पर महिलाओं की स्थिति को स्पष्ट कर दे। ताकि वो राहत के लिए कानून में मौजूद विकल्प आजमा सकें।
सुप्रीम कोर्ट के धन्नू लाल बनाम गणेशराम और बदरी प्रसाद, इंद्रा शर्मा सहित कई मामलों में दिए गए फैसले का हवाला देते हुए याचिका में कहा गया है कि कोर्ट उन फैसलों में मान चुका है कि लिव इन में रहने वाले जोड़ों को भी शादीशुदा की ही तरह माना जाएगा। उनसे पैदा हुए बच्चों को भी पैतृक संपत्ति और अन्य विरासत के अधिकार शादीशुदा दंपत्ति की संतानों की तरह ही हासिल करने का अधिकार होगा।
याचिका में कहा गया है कि लिव इन संबंधों के रजिस्ट्रेशन यानी निबंधन के प्रावधान के अभाव में संविधान के अनुच्छेद 21 में वर्णित महिलाओं के गरिमापूर्ण जीवन जीने और निजता के अधिकार की सुरक्षा की गारंटी का हनन होता है। लिव इन रिलेशनशिप में लगातार बढ़ते धोखे, झांसे और हिंसक अपराधों को रोकने के लिए केंद्र सरकार को इस संबंध में कानून और गाइडलाइन तैयार करने के निर्देश दिए जाएं। याचिका में हाल ही में हुए श्रद्धा, निक्की व अन्य हत्याकांड का हवाला दिया गया है।
