समलैंगिक विवाह को मंजूरी की मांग वाली याचिकाओं पर केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपना जवाब दाखिल कर दिया है। सरकार ने ऐसी सभी 15 याचिकाओं का विरोध किया, जिनमें समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग की गई है। सरकार ने अपने हलफनामे में कहा कि समलैंगिक विवाह को मंजूरी नही दी जा सकती है। ये एक परिवार की भारतीय अवधारणा के खिलाफ है। भारत में परिवार की अवधारणा पति-पत्नी और उनसे पैदा हुए बच्चों से होती है। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से इन सभी याचिकाओं को खारिज करने की मांग की।
सुप्रीम कोर्ट सोमवार को इस मामले की सुनवाई करेगा। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि समलैंगिक संबंध और विषमलैंगिक संबंध स्पष्ट रूप से अलग-अलग वर्ग हैं, जिनको किसी भी सूरत में एक समान नहीं माना जा सकता है। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि समान-लिंग वाले लोगों के जीवन साथी के तौर पर रहने को भले ही अब डिक्रिमिनलाइज कर दिया गया है। इसके बावजूद पति, पत्नी और बच्चों की भारतीय परिवार की इकाई की अवधारणा के साथ इसकी तुलना नहीं हो सकती है।
केंद्र सरकार ने कहा कि आईपीसी की धारा 377 का डिक्रिमिनलाइजेशन किया जाना समान-लिंग विवाह के लिए मान्यता हासिल करने के दावे को जन्म नहीं दे सकता है। प्रकृति में विषमलैंगिक तक सीमित विवाह की वैधानिक मान्यता पूरे इतिहास में एक आदर्श है और राज्य के अस्तित्व और निरंतरता दोनों के लिए बुनियादी पहलू है। इसलिए इसके सामाजिक मूल्य को ध्यान में रखते हुए विवाह के अन्य रूपों का बहिष्कार करना और केवल विषमलैंगिक विवाह को मान्यता देना राज्य का एक जरूरी हित है।
