भीलवाड़ा में शीतलाष्टमी पर आज गली-मोहल्लों में रंग-गुलाल उड़ाया गया। चौक-चौराहों, बाजारों में लोग डीजे लगाकर होली गीतों पर झूमे।
भीलवाड़ा में शीतलाष्टमी पर रंग महोत्सव मनाने की मेवाड़ की 200 साल पुरानी परंपरा निभाई जाती है। आज के दिन यहां मुर्दे की सवारी निकाली जाती है। उसे अर्थी पर लिटाकर जलाने के लिए श्मशान तक ले जाते हैं। रास्ते में कई बार वह अर्थी से उठकर भागने की कोशिश करता है और आखिरकार श्मशान घाट पहुंचने पर भाग जाता है।
आज बागौर की हवेली से मुर्दे की सवारी दोपहर 2 बजे निकाली गई। शहरवासी इसे रंग-गुलाल उड़ाते हुए अंतिम संस्कार के लिए ले गए। इसे देखने के लिए आस-पास के कई जिलों के लोग पहुंचे। लोगों ने बताया कि मुर्दे की सवारी निकालने की परंपरा मेवाड़ रियासत समय से चली आ रही है। इस मुर्दे को लोक देवता ईलोजी के रूप में बताया जाता है और इसकी सवारी पूरे शहर में निकाली जाती है। सवारी के दौरान रंग गुलाल उड़ाया जाता है और पुरुष लोकगीतों पर नाचते-गाते चलते हैं।
अंतिम संस्कार के लिए बड़े मंदिर के पास बहाला ले जाकर अर्थी को चिता पर लिटाने की तैयारी की जाती है। इससे पहले ही मुर्दा उठकर भाग जाता है। इसके बाद अर्थी का अंतिम संस्कार किया जाता है।
