गर्भस्थ शिशु को भी कोरोना का खतरा

मियामी विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने बताया कि ऐसे दो मामले सामने आए हैं, जिनमें कोविड वायरस मां की नाल को पार कर गया और गर्भ में पल रहे शिशु के दिमाग को नुकसान पहुंचा दिया। डॉक्टरों को पहले से ही संदेह था कि ऐसा होना संभव है। मगर अब तक मां के प्लेसेंटा (नाल) या शिशु के दिमाग (ब्रेन) में कोविड-19 का कोई सबूत नहीं मिला था। मगर इन दोनों बच्चों को जन्म देने वाली माताओं को टीका लगाने से पहले 2020 में महामारी की डेल्टा लहर के पीक पर कोरोना संक्रमित पाया गया था। ये केस स्टडी जर्नल पीडियाट्रिक्स में छपी है।

साइटोमेगालोवायरस, रूबेला, एचआईवी और जीका सहित कई वायरस माता के प्लेसेंटा को पार करने और भ्रूण के ब्रेन को नुकसान पहुंचाने में सक्षम माने जाते हैं। कोविड-19 वायरस भी वयस्कों के दिमाग के ऊतकों में पाया गया है। कुछ विशेषज्ञों को पहले ही संदेह था कि यह भ्रूण के दिमाग के ऊतकों को भी नुकसान पहुंचा सकता है। मियामी विश्वविद्यालय में प्रसूति एवं स्त्री रोग के अध्यक्ष डॉ. माइकल पेडास ने कहा कि यह पहली बार है, जब हम ट्रांसप्लासेंटल के रास्ते से भ्रूण के अंग में पहुंचे कोविड वायरस के सबूत को सामने लाने में सक्षम हुए हैं।

जिन नवजात शिशुओं के ब्रेन को कोविड वायरस ने डैमेज किया था, उनको पैदा होने के दिन से ही दौरे पड़ते थे। हालांकि जीका वायरस के होने वाले असर के विपरीत ये बच्चे माइक्रोसेफली के साथ पैदा नहीं हुए थे। माइक्रोसेफली एक ऐसी स्थिति होती है, जिसमें बच्चों के सिर छोटे आकार के होते हैं। रिसर्च टीम ने कहा कि इसके बजाय इन बच्चों में माइक्रोसेफली समय के साथ डेवलप हुई, क्योंकि उनके दिमाग ने सामान्य दर से बढ़ना बंद कर दिया। दोनों बच्चों में विकास संबंधी गंभीर देरी देखी गई। रिसर्च टीम ने कहा कि बच्चों में से एक की 13 महीने की उम्र में मौत हो गई और दूसरा अस्पताल में है। इनमें से एक बच्चे की मां में केवल हल्के लक्षण थे और बच्चे का जन्म गर्भ का समय पूरा होने पर हुआ, जबकि दूसरी मां इतनी बीमार थी कि डॉक्टरों को 32 हफ्ते के गर्भ में ही बच्चे को जन्म देना पड़ा।

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