रामलला जन्मसभूमि केस के दौरान सुप्रीम कोर्ट में अपनी गवाही से मामले की दिशा मोड़ देने वाले गुरु रामभद्राचार्य हाल में तुलसीकृत हनुमान चालीसा में गलतियां निकालने के कारण सुर्खियों में हैं।
जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने तुलसीकृत हनुमान चालीसा की चौपाइयों में चार अशुद्धियां बताईं हैं। साथ ही कहा कि इन्हेंस सही किया जाना चाहिए। उनके बयान को लेकर विवाद खड़ा हो गया। रामभद्राचार्य का कहना है कि हनुमान भक्तों को चालीसा की चौपाइयों का शुद्ध उच्चाारण करना चाहिए। उनके अनुसार हनुमान चालीसा की एक चौपाई में ‘शंकर सुवन केसरी नंदन’ छपा है, जबकि इसमें सुवन की जगह स्वहयं होना चाहिए। उन्होंकने तर्क दिया कि हनुमान जी स्व्यं भगवान शिव के अवतार हैम। वह शंकर जी के पुत्र नहीं हैं. इसलिए चौपाई में छपा ‘सुवन’ अशुद्ध है। एक अन्य चौपाई में ‘सबपर राम तपस्वीई राजा’ के बजाय ‘सब पर राम राज फिर ताजा’ होना चाहिए। एक चौपाई में छपा ‘सदा रहो रघुपति के दासा’ के बजाय ‘सादर रहो रघुपति के दासा’ होना चाहिए। चौथी अशुद्धि के तौर पर उन्हों ने बताया कि ‘जो सत बार पाठ कर कोई’ के बजाय ‘यह सत बार पाठ कर जोही’ होना चाहिए।
गुरु रामभद्राचार्य ने चित्रकूट में तुलसी पीठ की स्था पना की है। वह 2 महीने की आयु से ही दृष्टिहीन हैं। वह रामकथा वाचक के तौर पर काफी लोकप्रिय हैं। छोटी उम्र से ही दृष्टिहीन होने के बाद भी रामभद्राचार्य 22 भाषाओं के जानकार हैं और अब तक 80 ग्रंथों की रचना कर चुके हैं। बागेश्व र धाम के पीठाधीश्वार पंडित धीरेंद्र कृष्णन शास्त्रीा गुरु रामभद्राचार्य के शिष्य हैं।
राम जन्मभूमि केस में जब सुप्रीम कोर्ट के न्या याधीशों ने गुरु रामभद्राचार्य से भगवान राम के जन्मजस्थाभन के बारे में शास्त्री य और वैदिक प्रमाण मांगे थे, तो उन्होंने अथर्ववेद का हवाला दिया था। उन्होंनने अथर्ववेद के 10वें कांड के 31वें अनुवाक के दूसरे मंत्र का हवाला देते हुए भगवान राम के जन्मो का वैदिक प्रमाण दिया था। इसके अलावा उन्हों ने ऋग्वेूद की जैमिनीय संहिता का उदाहरण भी दिया, जिसमें सरयू नदी के विशेष स्थाेन से दिशा और दूरी का सटीक ब्यौतरा देते हुए राम जन्मसभूमि का स्थाेन बताया गया है। कोर्ट में वेदों को मंगाया गया और जांच की गई। इनमें रामभद्राचार्य का बताया गया ब्यौारा सही पाया गया। एक बार रामकथा के दौरान खुद रामभद्राचार्य ने बताया कि इस पर पीठ में शामिल मुस्लिम जज ने कहा, ‘आप दैवीय शक्ति हैं।’
गुरु रामभद्राचार्य चित्रकूट में रहते हैं। उनका वास्तविक नाम गिरधर मिश्रा है। वह एक विद्वान्, शिक्षाविद्, बहुभाषाविद्, रचनाकार, प्रवचनकार, दार्शनिक और धर्मगुरु हैं। उन्होंकने दो संस्कृत और दो हिंदी में मिलाकर कुल चार महाकाव्य की रचना की है। साल 2015 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मविभूषण से सम्मानित किया था।
