
आज रिलीज हुई फिल्म ‘द केरल स्टोरी’ देखकर यही सार निकलता है। थिएटर से निकल कर दिमाग में पहली बात यही आती है कि इसे अंत तक देखने के लिए दर्शकों को वही दवा मिलनी चाहिए, जिसे फिल्म में नर्स बनने आई लड़कियों को आतंकवाद की तरफ धकेलने में लगे लोग खिलाते हुए दिखाए जाते हैं। ये दवा ब्रेनवाश करने में मदद करती है।
फिल्म निर्माता ने तीन लड़कियों की कहानी को, ’32 हजार’ लड़कियों की कहानी बताकर खुद ही अपनी फिल्म पर सबसे बड़ा व्यंग्य किया है। उन्होंने टीजर से लेकर प्रमोशन तक ’32 हजार लड़कियों’ की कहानी बताने के बाद फिल्म के अंत में स्क्रीन पर एक लाइन लिख दी कि–30 हजार का आंकड़ा उनको एक वेबसाइट से मिला था। अब ये वेबसाइट इंटरनेट से लापता है। लगता है फिल्म निर्माता के साथ कोई प्रेंक हुआ है।
‘द केरल स्टोरी’ 3 लड़कियों की कहानी है, जिनकी जिंदगी आईएसआईएस के लिए काम करने वाले कुछ भारतीय मुसलमानों के हाथों बर्बाद हो गई है। फिल्म में लव जिहाद के एंगल को भी भुनाया गया है, जहां मुस्लिम लड़के 2 लड़कियों को इस्लाम अपनाने और अपने परिवारों को छोड़ने के लिए मजबूर करते हैं। शालिनी उन्नीकृष्णन (अदा शर्मा) धर्म-परिवर्तन कर फातिमा बा बन जाती हैं। फिर कई उतार-चढ़ाव का सामना करती है। कैसे इन लड़कियों को प्यार और पैसे देकर ब्रेनवॉश कर उनका विश्वास जीता गया। उन्हें कुछ तर्कों के साथ बताया गया कि इस्लाम दुनिया का सबसे बड़ा धर्म है, बाकी धर्मों के भगवान में कितनी खामियां हैं।
फिल्म में कई जगहों पर भगवान और अल्लाह के बीच कौन शक्तिशाली है? इस पर भ्रामक और बचकाने तर्क दिए गए हैं। आसिफा (सोनिया बलानी) जब दोजक (नर्क) और हेल फायर का तर्क देती है, तो अन्य किरदार शालिनी, निमाह (योगिता बिहानी), गीतांजली (सिद्धी इदनानी) जिस तरह नदानी भरी प्रतिक्रिया देती हैं, उसे देखकर हैरानी हुई। हिंदू धर्म के अलावा अन्य धर्मों में भी मरने के बाद की अवधारणा- स्वर्ग, नर्क और पुनर्जन्म है। फिल्म डायरेक्टर सुदीप्तो ने यहां हिंदू लड़कियों को कमजोर और भोला, जबकि मुस्लिम लड़की को चालाक तथा इस्लाम के प्रति वफादार दिखाया।
फिल्म के एक हिस्से में कम्युनिज्म, जो धर्म को अफीम बताते हैं, उस पर भी चोट की गई है। कार्ल मार्क्स के सिद्धांत से लेकर रामायण और भगवान शिव पर भी सवाल उठाए गए हैं। पूरी फिल्म में किरदार निखर के सामने नहीं आ पाए। फिल्म के आखिरी तक एक दर्दनाक सफर को दिखाया गया है। फिल्म को वास्तविक बनाने के चक्कर सुदीप्तो उचित संतुलन नहीं बना पाए है। फिल्म के अंत में कुछ असल पीड़ितों की क्लिप भी दिखाई गई हैं, जो मन में थोड़ी हलचल पैदा करती है।
सुदीप्तो सेन एक स्वतंत्र फिल्ममेकर हैं। उन्होंने पहले ही इस मुद्दे पर ‘इन द नेम ऑफ लव’ नाम से डॉक्यूमेंट्री बनाई है। उसी डॉक्यूमेंट्री को थोड़ा बढ़ा-चढ़ा कर और जोड़-तोड़ कर फिल्म में तब्दील किया है। उन्होंने फिल्म को बनाने में बारीकियों और मार्मिकता को समझने में चूक कर दी। उन्होंने एक ही धर्म के प्रति जबरदस्ती की नफरत दिखाई है, जबकि खामियां सभी धर्मों में होती हैं। लगता है कि सुदीप्तो ‘द कश्मीर फाइल्स’ से प्रभावित थे, जिस तरह उस फिल्म में चीजों को बढ़ाकर-चढ़ाकर एक दिखाया है, उसी तरह सुदीप्तो ने ‘द केरला स्टोरी’ में दिखाया है।