कानून मंत्रालय से रिजिजू, बघेल दोनों हटाए

मोदी सरकार ने कानून मंत्री किरेन रिजिजू और उनके डिप्टी प्रोफेसर एसपी सिंह बघेल दोनों को हटा दिया है। रिजिजू को अब पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय देकर उनका कैबिनेट में ओहदा कम किया गया है। उनकी जगह अर्जुन राम मेघवाल नए कानून मंत्री होंगे।

वहीं, प्रोफेसर बघेल को राष्ट्रपति ने प्रधानमंत्री की सलाह पर बदल है। अब वे कानून और न्याय मंत्रालय में राज्यमंत्री के स्थान पर स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय में राज्य मंत्री होंगे।

राष्ट्रपति भवन की ओर से जारी सूचना में बताया गया है कि अर्जुन मेघवाल को स्वतंत्र प्रभार सौंपा गया है। उनके पास पहले से संसदीय मामलों के राज्य मंत्री का जिम्मा है। किरेन रिजिजू को रविशंकर प्रसाद की जगह जुलाई 2021 में कानून मंत्री बनाया गया था। वह अपने कार्यकाल में जजों पर टिप्पणियों को लेकर हमेशा सुर्खियों में रहे। उन्होंने कॉलेजियम को लेकर खुलकर कहा था कि देश में कोई किसी को चेतावनी नहीं दे सकता है। इसी प्रकार गत 18 मार्च को किरण रिजिजू ने कहा था कि कुछ रिटायर्ड जजों की बात सुनकर लगता है की ये एंटी इंडिया ग्रुप का हिस्सा बन गए हैं। ये लोग कोशिश करते हैं कि भारतीय न्यायपालिका विपक्ष की भूमिका निभाए। देश के खिलाफ इस तरह के काम करने वालों को इसकी कीमत चुकानी होगी।

इसी साल फरवरी में इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के एक कार्यक्रम में रिजिजू ने सरकार बनाम न्यायपालिका की बात से इनकार करते हुए कहा था कि देश में न्यायपालिका बनाम सरकार जैसा कुछ नहीं है। यह लोग हैं, जो सरकार का चुनाव करते हैं। वो हीं सर्वोच्च हैं और हमारा देश संविधान के अनुसार चलता है।

जजों की नियुक्ति में देरी पर सुप्रीम कोर्ट ने इस साल की शुरुआत में ही नाराजगी जताई थी। केंद्र से कहा था कि हमें ऐसा स्टैंड लेने पर मजबूर न करें, जिससे परेशानी हो। इसके बाद रिजिजू ने प्रयागराज में एक सभा के दौरान कहा था- मीडिया रिपोर्ट्स में कहा जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट ने कॉलेजियम पर चेतावनी दी है। इस देश के मालिक यहां के लोग हैं, हम सिर्फ उनके सेवक हैं। हम संविधान को सर्वोपरि मानते हैं, संविधान के अनुसार ही देश चलेगा। कोई किसी को चेतावनी नहीं दे सकता है।

सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की व्यवस्था के खिलाफ भी किरेन रिजिजू मुखर रहे और कई बार इसकी आलोचना की। उनके बयानों के चलते ही बीते कुछ माह पहले 90 रिटायर्ड अफसरों ने इस पर नाराजगी जताई थी और कानून मंत्री को पत्र लिखा था। अफसरों ने पत्र में लिखा था कि कानून मंत्री ने कई मौकों पर जजों की नियुक्ति के कॉलेजियम सिस्टम और न्यायिक स्वतंत्रता पर ऐसे बयान दिए, जो सुप्रीम कोर्ट पर हमला लगते हैं।

पत्र में रिजिजू के बयानों की सामूहिक निंदा की गई और कहा गया था कि न्यायिक स्वतंत्रता से किसी भी सूरत में समझौता नहीं किया जा सकता। वकीलों के एक बड़े ग्रुप ने भी किरेन रिजिजू के बयानों का विरोध किया था और कहा था कि उन्होंने संवैधानिक मर्यादाओं को लांघा है। सरकार की आलोचना करना, राष्ट्र की आलोचना करना नहीं है, ना ही ये देशद्रोह है। हमें जहां भी सरकार की नीतियों में कमी दिखेगी, हम उसपर सवाल करेंगे।

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