
- हेमलता चतुर्वेदी –
विश्व पटल एक क्रिकेट स्टेडियम बन गया है। दुनियाभर के देश खिलाड़ी बन गए और साल 2020 एक तेज रफ्तार ट्वेंटी-20 मैच हो गया। बीस ओवर के इस अनचाहे मैच में चीन जैसे खतरनाक खिलाड़ी ने कोरोना की ऐसी फिरकी गेंद फेंकी कि दुनियाभर के दिग्गज खिलाड़ी (देश) कनफ्यूज हो गए कि इसका करें क्या, खेलें कि जानें दें! समझदारों ने इससे निपटने के लिए मास्क को अपनी ड्रेस का हिस्सा बनाया और कोरोना को बाउन्ड्री पार करवाने में जुट गए। मैच के दौरान कुछ खिलाड़ी रनआउट हुए तो कुछ रिटायर्ड हर्ट! लेकिन खेल भावना ने किसी का भी दम नहीं फूलने दिया और आज विभिन्न देश बैट्समैन बनकर, कुछ कम तो कुछ ठीक-ठाक और कुछ सर्वश्रेष्ठ स्कोर के साथ मैच ओवर करने में लगे हैं। कुछ देशों के ड्रैसिंग रूम (लैबोरेट्री) में विभिन्न प्रकार की वैक्सीन तैयार हो रही हैं। उम्मीद है इन खिलाड़ी देशों की वैक्सीन मैच का रुख बदल देगी।
अब देश-दुनिया को इंतजार है तो बस, मैच की आखिरी गेंद यानी 31 दिसम्बर 2020 का। इस दिन लोग न तो आने वाले साल को सलाम कहेंगे न जाने वाले को। इस बार बदला सा नजारा होगा। साल 2020 का खेल खत्म होते ही इसका विसर्जन कर, नए साल का स्वागत और उसकी प्राण प्रतिष्ठा पूर्ण मनोयोग से की जाएगी। उतार-चढ़ावों के बीच पारी समाप्ति की ओर बढ़ रहा यह साल बहुत से बदलावों के लिए याद किया जाएगा।
सामाजिक बदलाव
आखिर लोग इस ट्वेंटी-20 साल से बेवजह तो त्रस्त नहीं हुए। शुरुआती दो-ढाई माह ठीक-ठाक बीतने के बाद ही कोरोना संक्रमण को लेकर मचा हाहाकार सालभर शोर मचाता रहा। कभी मद्धिम तो कभी तेज रफ्तार पकड़ती मानव से मानव को संक्रमण की ये अनूठी महामारी से आज भी दुनिया सकते में है। जर्मनी, इटली में मौतों की संख्या और मरीजों की दुर्दशा देख अमरीका में शटडाउन तो भारत में लॉकडाउन में लोगों ने रातों-रात डिपार्टमेंटल स्टोर खाली कर घरों में कई महीनों की राशन सामग्री जुटा ली। लॉकडाउन के दौरान जो जहां था वहीं घर में कैद हो गया, क्योंकि मुहिम चलाई गई- ‘घर में रहो, स्वस्थ रहो।’ इस दौरान दूरदर्शन पर रामायण व महाभारत जैसे पौराणिक धारावाहिकों ने घर बैठने की दिनचर्या सैट करने में लोगों की काफी मदद की। शुरू-शुरू में सेलिब्रिटीज ने लॉकडाउन कुकिंग, क्लीनिंग के वीडियो सोशल मीडिया पर साझा किए। कितने ही लोगों ने घर में केक बनाकर बर्थ-डे मनाया। यू-ट्यूब पर कुकिंग वीडियोज के दर्शक बढ़ गए। इसी समय प्रवासी मजदूरों का खोता धैर्य और घर वापसी की मजबूरी मानवता के कई पक्ष उजागर कर गई। कहीं मदद को हाथ उठे तो कहीं राजनीति गर्माई।
अंतत: अधिकांश मजदूर अपने-अपने शहरों में लौट कर आजीविका के नए स्रोत अपना कर सामान्य जीवन की नई शुरूआत कर चुके हैं। सामाजिक दूरी को जरूरी नियम के तहत अपनाने वाले लोग सोशल मीडिया पर ज्यादा पास आते नजर आए। हालांकि डिजीटल समाज, सामाजिक संबंधों की घनिष्ठता की जगह तो नहीं ले सकता, लेकिन समाज को जोड़े रखने का बड़ा जरिया बन कर सामने आया है।
चरैवेति..से गतिमान अर्थव्यवस्था
चूंकि हर महामारी का पहला और व्यापक असर अर्थव्यवस्था पर पड़ता है। ऐसे में साल 2020 का कोरोना काल भी आर्थिक मंदी लेकर आया, लेकिन समय रहते सरकारों ने इस ओर ध्यान दिया और अर्थव्यवस्था ठप होने से बचाने के लिए लॉकडाउन को अनलॉक किया। भारत सरकार ने राहत पैकेजों की घोषणाएं कीं। बैंकिंग क्षेत्र में कई तरह के सुधार और एमएसएमई को दोबारा खड़ा करने से लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आत्म निर्भर भारत अभियान के साथ ही वोकल फॉर लोकल मंत्रों ने छोटे कारोबारियों को आशा की किरण दिखाई। महामारी के शुरुआती चरण में लोगों का वेतन भी कटा। निजी क्षेत्रों में तो अब तक कट रहा है। कहीं कम तो कहीं ज्यादा। आईएमएफ जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्था भारत की अर्थव्यवस्था पर चिंता जता चुकी थी, लेकिन दिसम्बर आते-आते अर्थव्यवस्था के पटरी पर लौटने के सुखद परिणाम दिखने लगे और सेंसेक्स 46 हजार के आंकड़े को पार कर गया। महामारी की वजह से मास्क-पीपीई किट निर्माण इकाइयां शुरू हुईं तो सैनेटाइजर-साबुन-डिटर्जेंट व्यापार में वृद्धि हुई। अर्थजगत के कुछ व्यापार खास तौर पर पर्यटन, होटल, रेस्टोरेंट, मल्टीप्लेक्स, बेकरी, स्नैक्स की छोटी दुकानों पर कोरोना की मार ऐसी पड़ी कि कुछ ने तो अपना व्यापार ही बदल लिया। रेस्टोरेंट एफएमसीजी क्षेत्र में उतर आए तो इसी से जुड़ी ऑनलाइन फूड डिलीवरी सेवा राशन सामग्री और फल-सब्जी डिलीवरी करने लगी। ये सारे बदलाव पहली बार देखे गए। परिवर्तन जरूरी है और बैठना किसी समस्या का हल नहीं। इसीलिए चरैवेती-चरैवेति… के मूल मंत्र ने अर्थव्यवस्था को गतिमान बनाए रखा गया।
शिक्षा जगत की नई नीति
इस साल सर्वाधिक बदलाव अगर किसी क्षेत्र में देखने को मिला तो वह रही शिक्षा। इस क्षेत्र की पहली सीढ़ी स्कूल जो लॉकडाउन के साथ ही बंद हो गए थे,अधिकांश राज्यों में आज तक नहीं खुल पाए हैं। सही भी है, भारतीय अभिभावकों से अगर बच्चे की शिक्षा और जान दोनों में से एक को चुनने को कहा जाए तो निश्चित रूप से अधिकांश माता-पिता बच्चे की जान और स्वास्थ्य को प्राथमिकता देंगे। इसीलिए ऑनलाइन क्लासेज का चलन हुआ। सभी स्कूल इस सत्र को बेकार न जाने की कोशिश में लगे दिखे और शिक्षकों को ऑनलाइन क्लासेज के जरिये स्कूली पाठ्यक्रम पूरा करने का लक्ष्य दिया गया। शिक्षकों व छात्रों ने इस चुनौती को सहर्ष स्वीकार किया। इसी का नतीजा रहा कि यूनिट टैस्ट से लेकर अद्र्धवार्षिक परीक्षा तक ऑनलाइन ले ली गई और अब सत्र समाप्ति की ओर है। कॉलेज शिक्षा का जहां तक सवाल है, पाठ्यक्रम वहां भी ऑनलाइन ही पूरा हो रहा है। कोरोना काल में परीक्षा का आयोजन यहां भी बड़ी चुनौती है। बोर्ड परीक्षाओं का आयोजन भी अभी भविष्य के हवाले है, यथा स्थिति अनुसार ही निर्णय हो पाएगा। इस सब के बीच 34 साल बाद राष्ट्रीय शिक्षा नीति भी आई, जिसमें गांव से लेकर शहर तक प्रारंभिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा और व्यावसायिक शिक्षा पर फोकस किया गया है। इस लिहाज से 2020 शिक्षा क्षेत्र के लिए यादगार साल बन गया।
धर्म और धार्मिक स्थल
वर्ष 2020 वाकई धर्म के संकट का साल भी कहलाएगा। कहीं धर्म विशेष के लोग संकट का सबब बने तो कहीं धर्म के नाम पर सरकारों की मुश्किल बढ़ी। फ्रांस में पैगम्बर की तस्वीर दिखाने वाले शिक्षक को जान से हाथ धोना पड़ा तो वहां की सरकार कट्टरपंथियों के निशाने पर आ गई। मामला धर्म से आगे निकल कर अभिव्यक्ति की आजादी का बन गया और दुनिया के बाकी देशों तक इसकी गूंज सुनाई दी। टीवी विज्ञापन से लेकर सडक़ों और सियासी गलियारों तक लव जिहाद ने तूल पकड़ा। मंदिरों के कपाट बंद हुए तो लोग कुछ महीने बाद ही भगवान के दर्शन करने को उतावले होने लगे और मंदिर खोलने की मांग उठने लगी। अब लगभग अधिकांश मंदिर खुल गए हैं। कुछ प्रसिद्ध मंदिरों का प्रसाद भक्तों को डाक से भिजवाने की बात कही जा रही है तो अयोध्या में राम मंदिर का भूमि पूजन कार्यक्रम भी 2020 में ही हुआ।
जीवन शैली
साल-2020 की चर्चा में जीवन शैली को छोड़ देने का सवाल ही नहीं है। जमाना अगर नॉर्मल से न्यू नॉर्मल की ओर बढ़ा है तो उसका पूरा श्रेय इसी साल 2020 को मिलेगा। रिमोट वर्किंग या वर्क फ्रॉम होम हो या वर्चुअल समारोह, वेबिनार में बदलते सेमिनार हों या घर बैठे बैंकिंग। हर जगह डिजीटल वल्र्ड साकार होता नजर आया। सम्पर्क से बचने के लिए ऑनलाइन शॉपिंग को प्राथमिकता मिली। नतीजा यह रहा कि 2020 में ऑनलाइन शॉपिंग बाजार रिकॉर्ड ऊंचाईयों को छूता नजर आया। पहले कुछ ही लोग ऑनलाइन शॉपिंग कर रहे थे, अब यह वक्त की जरूरत बन गया है। बदलती जीवन शैली का असर टीवी विज्ञापनों में बखूबी दिखाई दिया है। च्यवनप्राश, चॉकलेट, साबुन, सैनेटाइजर, कीटाणुनाशक जैसे उत्पादों के विज्ञापन में तो यह दिखा ही, बीमा कम्पनी और टैक्सी सर्विस तक के विज्ञापन इस न्यू नॉर्मल की थीम पर बने। रोग प्रतिरोधक क्षमता की महती आवश्यकता ने लोगों को स्वास्थ्य के प्रति इतना जागरूक कर दिया कि एलोपैथी दवाओं के अलावा आयुर्वेद और होम्योपैथी उत्पादों की खरीद और खपत बढ़ गई। च्यवनप्राश का सेवन करने के लिए सर्दी के मौसम का इंतजार नहीं किया गया। गर्मियों में ही च्यवनप्राश की रिकॉर्ड खपत हुई। लॉकडाउन में मिले फुर्सत के पलों ने दिनचर्या बदली और लोगों का रुझान योग-प्राणायाम की ओर बढ़ा। आज का न्यू नॉर्मल है-घर से बाहर मास्क पहन कर निकलना, बाहरी चीज को हाथ से स्पर्श करो तो साबुन से बीस सैकेंड तक हाथ धोना, घर से बाहर सैनेटाइजर का इस्तेमाल करना, जहां तक संभव हो यात्रा से बचना। लोगों से दो गज की दूरी रख कर बाहर के आवश्यक कार्य करना। मास्क पहनना हो सकता है कोरोना के खत्म होने के बाद भी उपयोगी साबित हो। इन दिनों वायु प्रदूषण को देखते हुए भी मास्क पहनना सुरक्षित माना जाने लगा है।
शादी-उत्सव
उत्सवों और शादी समारोहों की बात की जाए तो 2020 ने बराती-घराती सबको एक नहीं कई बार कई तरह से चौंका दिया। कहीं पहले से बुक हो चुके विवाह स्थलों की बुकिंग स्थगित की गई तो कहीं सौ से ज्यादा मेहमान आने पर विवाह स्थल बंद कर दिए गए। कितने ही जोड़ों ने मास्क पहन कर शादी की रस्में पूरी की तो किसी जगह संक्रमित पाए जाने पर दूल्हे को तुरंत पीपीई किट पहना कर विवाह मंडप में बिठा दिया गया। शादियों के सीजन में सोशल मीडिया पर कितने ही मीम्स बने, लेकिन उससे ज्यादा शादियों के वीडियो शेयर हुए, क्योंकि नाते-रिश्तेदार जो विवाह में शामिल न हो पाए उन्हें भी तो विवाह समारोह की झलकियां दिखाना बनता है। इस वजह से एक अच्छी बात यह हुई कि शादियों का बजट काबू में आ गया। बेवजह के प्रदर्शन से बचते हुए बिना अधिक खर्च किए विवाह समारोह संपन्न हुए। हालांकि साल के जाते-जाते दिल्ली के पास किसान उत्सवी माहौल में आंदोलन करते नजर आए।
दोषी चीन
ड्रैगन से चमगादड़ बने चीन ने सैन्य गतिविधियों में भी खूब तेजी दिखाई। कहीं अमरीका को समुद्र में तो कहीं भारत को जमीन पर ललकारा! नतीजा क्या हुआ! डिजीटल मोर्चे पर चीन को नुकसान झेलना पड़ा। भारत ने टिकटॉक सहित चीन के 267 ऐप्स पर पाबंदी लगा दी। चीन पर दुनिया के खिलाफ कोरोना साजिश का संदेह जताने वाले अंतरराष्ट्रीय समुदाय को एकजुट होकर मामले की गहन जांच अवश्य करवानी चाहिए। देखा जाए तो संशय और आशंकाओं के साथ शुरू हुए 2020 में रोशनी की कमी वहीं से होना शुरू हो गई जब ओलम्पिक खेलों की मशाल बुझ गई।फिल्म अवार्ड समारोहों और कान्स फेस्टिवल की रेड कार्पेट बिछने से पहले ही सिमट गई। खेल का सूनापन और सिनेमा के पर्दे गिर जाने ने लोगों को यू-ट्यूब और ओटीटी प्लैटफॉर्म का विकल्प दे दिया। एक लकीर पर चल रही जीवनचर्या जब पटरी से उतरती है तो तकलीफ होना स्वाभाविक है, लेकिन उम्मीद पर ही दुनिया कायम है।
इसीलिए जाते हुए साल 2020 को विनम्रता के साथ नमन! आने वाला साल देश-दुनिया के लिए अच्छा स्वस्थ और खुशहाल जीवन लेकर आए इन्हीं मंगलकामनाओं के साथ-सुस्वागतम् 2021!