
– सन्तोष कुमार निर्मल –
व्यक्ति हो, कोई वस्तु या शहर, उसका वक्त बदलते देर नहीं लगती। जब किसी का अच्छा समय आता है तो उपेक्षित पड़ी वस्तु का भी महत्व बढ़ जाता है। जिस व्यक्ति या शहर की ओर कोई आंख उठाकर भी नहीं देखता था, वह सबकी आंखों का तारा बन जाता है। आकर्षण का केन्द्र बन जाता है। अयोध्या नगरी करीब तीन सालों से पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र बनी हुई है। इसका कारण योगी सरकार द्वारा अयोध्या में मनाई जाने वाली भव्य दीपावली है। इसके अलावा यहां होने वाली रामलीला को भी भव्य रूप प्रदान किया गया।
इन सबसे तो अयोध्या की रंगत बदली ही, लेकिन नवंबर 2019 में श्रीराम मंदिर निर्माण के बारे में आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने तो शहर की काया ही पलट दी। श्रीराम मंदिर निर्माण का रास्ता साफ होते ही अयोध्या नगरी सिर्फ देश ही नहीं, बल्कि विदेश की भी केन्द्र बिंदु बन गई। मीडिया में अयोध्या और श्रीराम मंदिर छा गए। श्रद्धालु श्रीराम जन्मभूमि के दर्शन के लिए लालायित हो उठे। पांच अगस्त 2020 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा श्रीराम मंदिर निर्माण कार्य का शिलान्यास करने के बाद यहां जिस तरह से लोगों की भीड़ बढ़ी, उसकी अयोध्यावासियों ने कल्पना ही नहीं की थी। अपार भीड़ और जय श्रीराम के नारे, यह नजारे अब यहां हर तरफ देखे जा सकते हैं। अयोध्या भ्रमण से वापसी के दौरान अधिकांश श्रद्धालुओं के हाथ में श्रीराम मंदिर के चित्र वाला ‘इंडिया’ दिखाई देता हैं। इस भीड़ में नई पीढ़ी की संख्या भी काफी अधिक है।
जो लोग तीन-चार साल या उससे पहले अयोध्या आए हैं, वह आज की अयोध्या को देखकर अंतर समझ सकते हैं। शहर का कोई ऑटो वाला खाली खड़ा दिखाई नहीं देता। होटल, गेस्ट हाउस, धर्मशाला भरे हुए हैं। धार्मिक पुस्तकों, पूजन सामग्री व प्रसाद की दुकानों पर अपार भीड़ दिखाई पड़ती है। इस भीड़ से दुकानदार प्रसन्न हैं। उनके चेहरे पर खुशी है। उनका कहना है कि इतनी भीड़ तो यहां कोई विशेष त्यौंहार या मेलों पर ही दिखाई देती थी। अब रोज इतनी भीड़ से उनके व्यवसाय में इजाफा हुआ है। यह सब वे रामजी की कृपा बताते हैं। उनका कहना था कि वह पहले भी खुश थे और आज भी खुश हैं। रामजी उन्हें जिस हाल में रखेंगे, वह उसमें ही खुश रहेंगे।
देखने में आया कि अनेक श्रद्धालु इस आशा से आ रहे थे कि यहां श्रीराम मंदिर निर्माण का कार्य शुरू हो चुका होगा, लेकिन उन्हें यह देखकर निराशा होती है कि अभी कोई भी निर्माण कार्य शुरू नहीं हुआ है। जन्मभूमि परिसर में अभी सफाई, खुदाई व समतल करने का कार्य चल रहा है। यह कार्य भी लॉकडाउन के दौरान बंद रहा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जिस स्थान पर शिलान्यास कार्यक्रम का शुभारंभ किया था, वहां पर कांच का एक मंदिर बनाकर रामलला की मूर्ति को तम्बू से उठाकर यहां स्थापित कर दिया गया है।
निर्माण कार्य में हो रहे विलंब के बारे में मंदिर के प्रमुख वास्तुकार देवेन्द्र सोमपुरा का कहना है कि लॉकडाउन के कारण ऐसा हुआ। इस दौरान यहां कार्य बिलकुल बंद रहा। अक्टूबर-नवंबर से यहां वर्षों से रखे गए पत्थरों की सफाई का कार्य शुरू हुआ। सोमपुरा ने उम्मीद जताई कि अप्रेम में राम नवमी के दिन मुख्य मंदिर की नींव निर्माण का कार्य शुरू हो सकता है। रामलला की मूर्ति के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं की लंबी-लंबी लाइनें दिन भर लगी रहती हैं। रामलला तक जाने का मार्ग भी पहले की अपेक्षा छोटा कर दिया गया है। पहले लोहे के पाइपों से बने रास्ते में करीब डेढ़ किलोमीटर का चक्कर लगाकर जाना पड़ता था, अब वहां एक नया रास्ता बना दिया गया है, जो रामजन्मभूमि के प्रवेश द्वार से करीब 500 मीटर दूरी पर है।
सुरक्षा यथावत
श्रीरामलला तक जाने का रास्ता अवश्य छोटा कर दिया गया है, लेकिन सुरक्षा व्यवस्था पहले की तरह है। यहां कैमरा, मोबाइल, कंघा, पेन, माचिस, पर्स, गुटखा, चाबी आदि लेकर जाना मना है। श्रद्धालुओं के सामान के लिए यहां लॉकर बने हुए हैं, वे उसमें अपना सामान रख सकते हैं। इसके लिए उन्हें बीस रुपये का भुगतान करना होता है।
हनुमानगढ़ी में भीड़
अयोध्या के रक्षक हनुमानजी के मंदिर हनुमानगढ़ी में भीड़ का आलम यह था कि मंदिर परिसर और मंदिर के आसपास गलियों में पैर रखने की भी जगह नहीं थी। इन गलियों में पैदन चलना भी मुश्किल है, उस पर से यहां दुपहिया वाहन और ऑटोरिक्शा भी निकलते रहते हैं। ऐसे में यातायात अवरुद्ध हो जाता है। इसमें पुलिस भी बेबस दिखती है।
प्रधानमंत्री मोदी भी शिलान्यास कार्यक्रम में सबसे पहले हनुमान गढ़ी ही गए थे। इसलिए गलियां बिलकुल पक्की दिखाई दीं। आसपास की दुकानों, घरों आदि पर पीला रंग भी दिखाई दिया। इन्हें मोदी के आने से पहले रंगा गया था। हनुमानगढ़ी के आसपास के दुकानदारों ने बताया कि प्रधानमंत्री के आने के एक दिन पहले ही यहां पूरे क्षेत्र को सुरक्षा बलों ने अपने कब्जे में ले लिया था। श्रद्धालुओं के लिए हनुमानगढ़ी बंद कर दी गई थी। पूरी अयोध्या एक छावनी में तब्दील हो गई थी। इस दिन अधिकांश दुकानें बंद रही थीं। ठेले खोमचे वाले गायब हो गए थे। उस दिन उनकी कमाई मारी गई थी, लेकिन उन्हें खुशी थी कि श्रीराम मंदिर का शिलान्यास होने जा रहा था। उसके सामने एक दिन की कमाई कुछ महत्व नहीं रखती।
कुछ भी हो, राम की नगरी का यह परिवर्तन सबको लुभाने वाला है। तीन-चार वर्ष में जब यहां मंदिर बन जाएगा, उस समय यह देखने लायक होगा। ठ्ठ
भए प्रकट कृपाला…
23 दिसंबर 1949 का दिन पुलिस हवलदार अबुल बरकत के लिए बड़ा रोमांचकारी साबित हुआ। इस दिन उसे ऐसा अहसास हुआ, जैसे ईश्वर उसके सामने आ गये। हवलदार अबुल उस समय श्रीराम जन्मभूमि परिसर में बाबरी मस्जिद के सामने ड्यूटी पर था। बाबदी मस्जिद के मुख्य द्वार पर उस समय ताला लगा हुआ था। उसने उस दिन के अनुभव को जब अपने साथियों को बताया, तो वे भी हतप्रभ रह गए। अबुल बरकत के अनुसार भगवान श्रीराम का प्राकट्य इसी दिन हुआ। इसके बाद से ही वहां पूजा-अर्चना शुरू हो गई।
हवलदार के बयान को अयोध्या के कारसेवकपुरम स्थित कार्यालय में एक बोर्ड पर अंकित कर दिया गया है। पर्यटक इसे पढक़र आश्चर्यचकित रह जाते हैं। उस बोर्ड पर लिखा हवलदार का बयान इस प्रकार है –
‘मेरा नाम अबुल बरकत है। मैं श्रीराम जन्मभूमि (बाबरी मस्जिद) पर ड्यूटी के तैनात था, आज तक कोई कार्रवाई हिंदुओं की ओर से नहीं हुई, जो गैर कानूनी कही जा सके। 22-23 दिसंबर 1949 की रात के लगभग 2 बजे जब मैं ड्यूटी पर तैनात था, एकाएक बाबरी मस्जिद में कुछ चांदनी सी नजर आई। मैं गौर से उस ओर देखने लगा। इसी बीच मुझे एहसास हुआ कि जैसे एक खुदाई रोशनी मस्जिद के भीतर हो रही है। धीरे-धीरे वह रोशनी सुनहरी होती गई और उसके भीतर एक बहुत ही खूबसूरत चार-पांच साल के बच्चे की सूरत नजर आई। उसके सिर के बाल घुंघराले थे, बदन मोटा-ताजा खूब तंदुरुस्त था। मैंने ऐसा खूबसूरत बच्चा अपनी जिंदगी में नहीं देखा था। उसे देखकर मैं सपने की हालत में हो गया। मैं कह नहीं सकता कि मेरी ऐसी हालत कब तक रही। जब होश में आया तो देखता हूं कि सदर दरवाजे का ताला टूटकर जमीन पर पड़ा हुआ है और मस्जिद के अंदर हिंदुओं की बेशुमार भीड़ घुसी हुई है। जो कि एक सिंहासन जिस पर कोई बुत रखा हुआ है, उसकी – भए प्रकट कृपाला दीन दयाला – गाते हुए आरती उतार रहे हैं। मैंने चटपट में यह खबर अधिकारियों के पास भिजवाई। इसके अलावा मैं कुछ नहीं जानता।’