
राजस्थान हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि यदि पति-पत्नी आपसी सहमति से तलाक लेना चाहते हैं तो उसके लिए छह माह तक अलग रहने (ज्यूडीशियल सेपरेशन) की शर्त मान्य नहीं होगी। प्रतापगढ़ के एक तलाक के मामले में उदयपुर की परिवार अदालत ने छह माह का समय तय किया था और तुरंत तलाक देने की अर्जी को भी खारिज कर दिया था। अब हाईकोर्ट ने इस मामले में साफ कहा है कि दोनों को छह माह का समय देना उचित नहीं है।
प्रतापगढ़ निवासी मोनिका शर्मा ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर बताया कि वह अपने पति उदयपुर जिला निवासी राहुल शर्मा से वर्ष 2019 से अलग रह रही है। दोनों ने आपसी सहमति से उदयपुर की परिवार अदालत में तलाक का आवेदन किया, लेकिन हमें छह माह का समय दे दिया गया, जबकि हम दोनों इससे काफी पहले से अलग रह रहे हैं। हाथों हाथ तलाक देने की अपील को अदालत ने खारिज कर दिया था।
मोनिका के वकील ने कोर्ट को बताया कि सुप्रीम कोर्ट पूर्व में एक मामले में छह माह की अवधि तक अलग रहने की अनिवार्यता को हटा चुका है। दोनों पक्ष के तर्क सुनने के बाद हाईकोर्ट के न्यायाधीश दिनेश मेहता ने कहा कि छह माह तक अलग रहने की वैधानिक अवधि को यह कोर्ट समाप्त करता है। साथ ही परिवार कोर्ट को आदेश दिया कि वह इस मामले में पूर्ण वैधानिक तरीके से तलाक की डिक्री(नोटिस) जारी कर सकता है।
धरियावद निवासी मोनिका शर्मा की शादी दिसंबर 2012 में उदयपुर जिला निवासी राहुल शर्मा के साथ हुई। शादी के कुछ समय बाद रिश्तों में खटास आना शुरू हो गई। दोनों ने साथ रहने का भरसक प्रयास किया, लेकिन बात नहीं बनी। आखिरकार वर्ष 2019 से दोनों ने अलग रहने का फैसला किया।2 अगस्त 2019 को दोनों ने उदयपुर के परिवार अदालत में तलाक की अर्जी दायर की। अदालत ने उन्हें छह महीने बाद की तारीख देकर काउंसिलिंग के लिए बुलाया। दोनों ने 8 अगस्त को संयुक्त रूप से परिवार कोर्ट में आवेदन कर छह माह की वैधानिक अवधि को समाप्त कर जल्दी फैसले का आग्रह किया। कोर्ट ने उनके इस आवेदन को खारिज कर दिया। इस पर दोनों की तरफ से हाईकोर्ट में याचिका पेश की गई।