
- सिमरन सोढ़ी
कुछ दिन पहले रूस ने यूक्रेन में अपनी सेनाएं भेजी और जैसा कि अमरीका और यूरोप ने संकेत दिए और दुनिया ने देखा कि रूस ने यूक्रेन पर हमला कर दिया। यूक्रेन को लेकर पिछले कुछ दिनों से तनाव चल रहा था और जर्मनी तथा फ्रांस, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को यूक्रेन पर हमला न करने के लिए मनाने की कोशिशों में जुटे थे। मगर सारे कूटनीतिक प्रयास उस समय विफल हो गए, जब पुतिन ने यूक्रेन में सेना भेज कर उस पर आक्रमण करने का फैसला कर लिया।
इस संकट को भारत के नजरिये से देखें तो उसके लिए यह परीक्षा की घड़ी होने साथ-साथ शांति वार्ताकार की महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने का अवसर भी है। क्योंकि भारत के रूस ही नहीं, बल्कि उसके विरोधी देशों के साथ भी अच्छे संबंध हैं। संबंधों की मिठास तीसरे विश्व युद्ध की ओर बढ़ते देशों को रोकने में सहायक हो सकती है।
दोनों पक्ष दोषी
वैसे, पुतिन की आक्रामक कार्रवाई पर गौर करने से पहले इसके इतिहास पर नजर डालना जरूरी है। जहां, रूस को इस कार्रवाई के लिए माफ नहीं किया जा सकता, वहीं पश्चिमी देश भी कुछ हद तक दोषी हैं। कई सालों से रूस कह रहा है कि नाटो का पूर्व की ओर विस्तार और रूस की सीमा से लगते राष्ट्रों को नए सदस्य के तौर पर शामिल करना सुरक्षा के लिहाज से रूस के लिए चुनौती खड़ी कर रहा है। पश्चिमी जगत रूस की चिंताओं को लगातार अनसुना कर रहा था। जिस प्रकार रूसी कार्रवाई को न्यायोचित नहीं ठहराया जा सकता, वैसे ही इस तथ्य पर भी गौर करना होगा कि अमरीका, ब्रिटेन और यूरोपीय देश रूस की सुरक्षा चिंताओं को दूर नहीं कर सके, जिसकी परिणति आज यूक्रेन-रूस युद्ध के रूप में दुनिया के सामने है।
कूटनीतिक लिहाज से यह भारत के लिए बड़ी दुविधा की घड़ी है। भारत के रूस, यूक्रेन, अमरीका और यूरोप के साथ अच्छे संबंध हैं। किसी पक्ष का समर्थन करना, इन देशों में से किसी के भी साथ संबंधों को दांव पर लगाने के समान होगा। जाहिर है इसीलिए भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में रूसी कार्रवाई पर निंदा प्रस्ताव पर मतदान से अनुपस्थित रहा। इस प्रस्ताव का गिरना तय था, क्योंकि रूस संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का स्थाई सदस्य है। यूएनएससी के इस प्रस्ताव पर रूस सहित 11 सदस्य देशों ने वीटो अधिकार का इस्तेमाल किया, जबकि भारत, चीन और संयुक्त अरब अमीरात मतदान से अनुपस्थित रहे। रक्षा सौदों के लिहाज से रूस भारत का महत्वपूर्ण सहयोगी है। अमरीका और यूरोप भी भारत के लिए महत्वपूर्ण सहयोगी हैं। पिछले कुछ वर्षों में भारत ने पश्चिमी देशों में अच्छी पैठ बनाई है।
भारत स्थित रूसी दूतवास ने यूएनएएसी में भारत के रुख का स्वागत किया। अपने ट्विटर पर दूतावास ने कहा-यूएनएससी में भारत के स्वतंत्र और संतुलित रवैये की भूरी-भूरी प्रशंसा करते हैं। भारत के साथ खास सामरिक साझेदारी के तहत रूस यूक्रेन के हालात पर भारत के साथ वार्ता के लिए प्रतिबद्ध है।
अपेक्षा, सधी चाल
गौरतलब है कि विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने और ऑस्ट्रेलिया, जापान व अमरीका के साथ ‘क्वाड’ समूह का सदस्य देश होने के बावजूद भारत ने न तो मास्को की कार्रवाई की निंदा की और न ही यह कहा कि रूस ने (यूक्रेन पर) आक्रमण किया है। भारत और रूस शीत युद्ध के दौरान भी घनिष्ठ सहयोगी बने रहे थे। इनके बीच आज तक यही संबंध जारी हैं और रूस भारत के लिए सबसे बड़ा हथियार आपूर्तिकर्ता है। यूक्रेन पर अपने रवैये को लेकर अमरीका भारत के साथ वार्ता कर रहा है और वह चाहता है कि भारत अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर रूस को ‘नियम आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था’ का अनुकरण करने के लिए मनाए।
भारत के लिए, इस वक्त अपने नागरिकों को यूक्रेन से बाहर निकालना पहली प्राथमिकता है और सरकार ने अपने नागरिकों की घर वापसी के लिए विशेष उड़ानों का इंतजाम किया है। रूस द्वारा युद्ध की घोषणा के बाद यूक्रेन में फंसे भारतीयों को निकालने के लिए भारत के विदेश सचिव हर्ष वी.श्रृंगला ने अपने नागरिकों को निकालने के लिए ऑपरेशन गंगा अभियान की शुरुआत की है। श्रृंगला के अनुसार यूक्रेन से भारतीयों को बाहर निकलने का पूरा खर्च सरकार वहन करेगी।
यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेन्सकी ने यूएनएससी में रूस के खिलाफ निंदा प्रस्ताव पर मतदान में भारत के अनुपस्थित रहने के बाद संयुक्त राष्ट्र में भारत से राजनीतिक सहयोग की मांग की। देखा जाए तो जो हालात बने हैं, उसमें भारत अहम भूमिका निभाने की स्थिति में भी है। क्योंकि भारत के सम्बंध सभी भागीदार देशों रूस, यूक्रेन और यूरोप व अमरीका के साथ अच्छे हैं। भारत किसी एक के पक्ष में होने के आरोपों का सामना किए बिना सभी देशों के साथ वार्ता कर सकता है। आने वाले दिनों में हो सकता है कि भारत अपनी इस स्थिति का इस्तेमाल कर सभी भागीदारों से बात कर रूस व पश्चिमी देशों से आग्रह करे कि वे आपसी समझाइश से युद्ध समाप्त करें और जनहानि को कूटनीतिक तरीके से रोका जा सके। यह एक प्रकार से भारत के लिए विश्व में अपनी स्थिति के आकलन का भी अवसर है।
पाबंदियों का दबाव
इस बीच, पश्चिमी देशों ने रूसी अर्थव्यवस्था को पटरी से उतारने और यूक्रेन पर कार्रवाई के खिलाफ दंड स्वरूप रूस पर और अधिक प्रतिबंध लगाए हैं। अमरीका, यूरोपीय संघ, फ्रांस, जर्मनी, इटली, यूके और कनाडा ने एक संयुक्त वक्तव्य में कहा कि रूस के सेंट्रल बैंक पर जुर्माना लगाने और कुछ रूसी बैंको को ट्रिलियन डॉलर ट्रांजेक्शन वाले स्विफ्ट मेसेजिंग सिस्टम से बाहर कर दिया गया है। इसके तहत ऐसे प्रतिबंधात्मक उपाय किए गए है ताकि रूसी सेंट्रल बैंक अपने अंतरराष्ट्रीय रिजर्व का इस्तेमाल कर प्रतिबंधों का असर कम न कर सके। पश्चिमी देशों के अनुसार रूसी आक्रामकता द्वितीय विश्व युद्ध के बाद तय किए गए मूलभूत अंतरराष्ट्रीय नियम और मानदंडों पर हमला है, जिनकी रक्षा के लिए हम प्रतिबद्ध हैं। उन्होंने कहा कि वे यूक्रेन पर हमले का दोषी ठहराने के लिए रूस के खिलाफ और भी कदम उठाने के लिए तैयार हैं।
पुतिन का बढ़ता विरोध
इससे पहले अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने कहा कि पुतीन ने यूक्रेन पर पूर्व नियोजित युद्ध थोपा है, जो अनर्थकारी साबित होगा। दुनिया रूस को पड़ोसी मुल्क में तबाही मचाने के लिए जिम्मेदार ठहराएगी। इधर, जापान भी यूक्रेन हमले के कारण रूस पर प्रतिबंध लगा रहा है। जापानी प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा ने कहा मास्को का कदम यूक्रेन की संप्रभुता पर चोट करने वाला और अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन है,जो स्वीकार्य नहीं है। फ्रांस के एमामुएल मैक्रो ने कहा कि यह यूरोपीय इतिहास में टर्निंग पॉइन्ट है, जब जी-सात समूह के देश गंभीर प्रतिबंध लगाने का संकल्प ले रहे हैं। पूर्वी यूरोप में शरणार्थियों की समस्या बढऩे की आशंका है। यूरोपीय संघ प्रमुख उर्सला वोंदेर लियन के अनुसार पुतिन ने एक बार फिर यूरोप को युद्ध के लिए मजबूर कर दिया। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉन्सन ने कहा, पुतिन ने खूनखराबे और विध्वंस का मार्ग चुना है। जर्मन चांसलर ओलाफ शुल्ज ने आक्रोश व्यक्त करते हुए कहा कि यह पुतिन का युद्ध’ है और रूसी नेता को अपनी इस गंभीर भूल के गंभीर परिणाम भुगतने होंगे। कुल मिला कर स्पष्ट है कि पश्चिमी देश रूस के खिलाफ एकजुट हो गए हैं। पश्चिमी विश्लेषकों का अनुमान है कि रूस के 150,000 सैनिकों में से आधे से ज्यादा सैनिक सीमा पर डटें हैं। रूस का मन्तव्य राजधानी कीव पर आधिपत्य कर वहां रूसी समर्थक सरकार गठित करना है। मौजूदा हालात में भारत को इस विवाद में भागीदार सभी देशों के साथ संबंधों में संतुलन बनाए रखना भी एक बड़ी चुनौती है।