
शादियों के इस सीजन में नागौर का मायरा फिर चर्चा में हैं। यहां किसान मामा ने अपनी 2 भांजी की शादी में करीब 71 लाख रुपए का मायरा भरा। थाली में नोट और जेवरात भरकर लाए तो सभी हैरान हो गए। भाइयों के इस प्यार को देख इकलौती बहन के आंख में आंसू आ गए। इतना ही नहीं भाइयों ने बहन को 500-500 रुपए से सजी चुनरी ओढ़ाई।
मामला नागौर जिले के लाडनूं शहर का है। सीता देवी की दो बेटियों प्रियंका (27) और स्वाति (25) की मंगलवार को शादी थी। भाई मगनाराम ने बताया कि 5 भाइयों के बीच सीता देवी इकलौती बहन है। बड़े भाई सुखदेव की तीन साल पहले मौत हो गई थी। उनकी इच्छा थी कि बहन का मायरा जब भी भरे उसकी चर्चा हो। मायरा में किसी भी तरह की कमी नहीं रहे। इस पर जायल के राजोद निवासी चारों भाई भाई मगनाराम, जगदीश, जेनाराम और सहदेव रेवाड़ा मायरा लेकर पहुंचे। रिश्तेदारों व पंच पटेल की मौजूदगी में मायरा भरा गया।
51 लाख रुपए नगददेने वाले मगनाराम ने बताया कि बड़े भाई की ईच्छा के अनुसार 30 साल से ये रुपए जमा कर रहे थे। शुरू से परिवार की इच्छा थी कि दो भांजियों का मायरा गाजे-बाजे के साथ भरा जाए। इस पर चारों मामा थाली में 51 लाख 11 हजार रुपए, 25 तोला सोना और 1 किलो चांदी के जेवरात लेकर पहुंचे। इसके अलावा बहन के ससुराल वालों को भी सोने-चांदी के जेवरात गिफ्ट के तौर पर दिए गए।
भाइयों ने बताया कि सीता उनकी इकलौती बहन है। बचपन में ही पिता का देहांत हो गया। सबसे बड़े भाई सुखदेव ने परवरिश की। पिता से 200 बीघा खेती के लिए जमीन मिली थी। साल दर साल रुपये जोड़ते रहे। 3 साल पहले बड़े भाई सुखदेव की मौत हो गई। इसके बाद तो इसे ही उसकी अंतिम इच्छा मान लिया था। बहन सीता के अभी एक बेटा और बेटी कुंवारी है। उनका कहना है कि इनके मायरे में भी कोई कमी नहीं आने देंगे।
वैसे, राजस्थान के मारवाड़ अंचल में नागौर का मायरा काफी सम्मान की नजर से देखा जाता है। मुगलकालमें यहां खिंयाला और जायल के जाटों द्वारा लिछमा गुजरी को अपनी बहन मान कर भरे गए मायरा को तो महिलाएं लोक गीतों में भी गाती हैं। कहा जाता है कि यहां के धर्माराम जाट और गोपालराम जाट मुगल शासन में बादशाह के लिए कर संग्रह कर दिल्ली दरबार में ले जाकर जमा करने का काम करते थे। इस दौरान एक बार जब वो कर संग्रह कर दिल्ली जा रहे थे तो बीच रास्ते उन्हें रोती हुई लिछमा गुजरी मिली। उसने बताया कि उसके कोई भाई नहीं है और अब उसके बच्चों की शादी में मायरा कौन लाएगा ? इस पर धर्माराम और गोपालराम ने लिछमा गुजरी के भाई बन कर संग्रह के सारे रुपए और सामग्री से मायरा भर दिया। बादशाह ने भी पूरी बात जान दोनों को सजा देने के बजाय माफ कर दिया था।