राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) ने भारत की प्रजनन दर में गिरावट बताई है। इसका मतलब सरकार द्वारा जनसंख्या नियंत्रण के लिए किए जा रहे प्रयाश का लाभ होते दिखाई दे रहा है। सर्व में यह भी बताया गया है कि परिवार में फैसले लेने में महिलाओं की भागीदारी बढ़ रही है।
एनएफएचएस ने पांचवें दौर का सर्वेक्षण कराया है, जिसमें उसने चौथे दौर (एनएफएचएस -4) से पांचवें दौर (एनएफएचएस -5) के बीच प्रजनन दर में कमी बताई है। भारत में कुल प्रजनन दर को प्रति महिला बच्चों की औसत संख्या के रूप में मापा जाता है। सर्वेक्षण ने प्रजनन दर 2.2 से घटाकर 2.0 कर दिया है। हालांकि सर्वेक्षण के अनुसार महिलाओं व पुरुषों दोनों में मोटापा बढ़ा है। महिलाओं में मोटापा 21 फीसदी से बढ़कर 24 फीसदी व पुरुषों में 19 फीसदी से बढ़कर 23 फीसदी हो गया है।
पांचवें दौर का सर्वे 28 राज्यों और 8 केंद्र शासित प्रदेशों के 707 जिलों में (मार्च 2017 तक) किया था। सर्वे में लगभग 6.37 लाख घरों को शामिल किया गया, जिसमें 7,24,115 महिलाएं व 1,01,839 पुरुष शामिल हुए। एनएफएचएस के अनुसार देश में कुल 5 राज्य हैं जो 2.1 के प्रजनन क्षमता के ऊपर हैं। सर्वेक्षण में बताया गया है कि गर्भनिरोधक का प्रसार दर देश में 54 फीसदी से बढ़कर 67 फीसदी हो गई है। इसके अलावा परिवार नियोजन के कारण भी 13 फीसदी से 9 फीसदी की गिरावट आई है। देश में पांच राज्य हैं जो 2.1 प्रजनन दर से ऊपर हैं। बिहार (2.98), मेघालय (2.91), उत्तर प्रदेश (2.35), झारखंड (2.26) औऱ मणिपुर (2.17)।
सर्वे में बयाया कि आंध्र प्रदेश, गोवा, सिक्किम, मणिपुर, दिल्ली, तमिलनाडु, पुडुचेरी, पंजाब, चंडीगढ़, लक्षद्वीप, केरल, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में एक तिहाई से अधिक महिलाएं या तो मोटापे से ग्रसित हैं या फिर अधिक वजन से ग्रसित हैं। एनएफएचएस -5 ने सभी राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों में एसडीजी संकेतकों में सुधार दिखाया है। साथ ही बताया है कि आमतौर पर विवाहित महिलाएं तीन घरेलू निर्णयों में भाग लेती हैं। स्वयं के लिए स्वास्थ्य देखभाल के बारे में, प्रमुख घरेलू खरीदारी में, अपने परिवार या रिश्तेदारों से मिलने जाने में।
