समलैंगिक विवाह को लेकर सुप्रीम कोर्ट में केंद्र अपना रुख कुछ दिन बाद स्पष्ट करेगा, लेकिन केंद्र में सत्तासीन भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के एक सांसद ने संसद में सोमवार को समलैंगिक विवाह का कड़ा विरोध किया और कहा, इस तरह के सामाजिक अहम मुद्दे पर दो जज बैठकर फ़ैसला नहीं कर सकते..।
राज्यसभा में भाजपा सांसद सुशील मोदी ने शून्यकाल में इस विषय को उठाया और कहा कि ‘कुछ वामपंथी-उदार कार्यकर्ता’ प्रयास कर रहे हैं कि समलैंगिक विवाह को कानूनी संरक्षण मिल जाए। बिहार से सांसद सुशील मोदी ने इसे अस्वीकार्य करार देते हुए कहा, न्यायपालिका को ऐसा कोई निर्णय नहीं देना चाहिए, जो देश की सांस्कृतिक मूल्यों के विरुद्ध हो…। उन्होंने कहा, मैं समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने का विरोध करता हूं। भारत में, न समलैंगिक विवाह को मान्यता है, न यह मुस्लिम पर्सनल लॉ जैसे किसी भी असंहिताबद्ध पर्सनल लॉ या संहिताबद्ध संवैधानिक कानूनों में स्वीकार्य है। समलैंगिक विवाह देश में मौजूद अलग-अलग पर्सनल लॉ के बीच बने नाज़ुक संतुलन को पूरी तरह तबाह कर देंगे। सुशील मोदी ने केंद्र सरकार से कोर्ट में भी समलैंगिक विवाह के विरुद्ध कड़ाई से तर्क रखने का आग्रह किया।
वर्ष 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने अहम फ़ैसले में समलैंगिक यौन संबंधों पर औपनिवेशिक काल से लागू पाबंदी को खत्म कर समलैंगिक यौन संबंधों को अपराध की श्रेणी से हटा दिया था। अब चार समलैंगिक जोड़ों ने सुप्रीम कोर्ट से समलैंगिक विवाह को लेकर मौजूदा कानूनों को नए सिरे से परिभाषित करने की अपील की है, ताकि समलैंगिक विवाह को अनुमति मिल सके। केंद्र पूर्व में समलैंगिक विवाह का विरोध करता रहा है और कह चुका है कि अदालतों को कानून बनाने की प्रक्रिया से दूर रहना चाहिए। कोर्ट को यह काम संसद पर छोड़ देना चाहिए। इस बार सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को अपना जवाब दाखिल करने के लिए 6 जनवरी तक का वक्त दिया है।
