राजस्थान में जलवायु परिवर्तन के कारण कीटों के खत्म होने से गौरैया का प्रमुख आहार छिन गया है। ऐसे में गौरेया की तेजी से घटती संख्या पर काबू पाने के लिए चूरू जिले के छापर कस्बे में रहने वाले राजस्व अधिकारी कन्हैयालाल स्वामी पिछले आठ सालों से एक मुहिम चला रहे हैं।
स्वामी के अनुसार चिडिय़ा गायब होती जा रही है। ऐसे में हमने ठाना है कि हर घर के बरामदे, मुंडेर पर इस चिडिय़ा को वापस लाना है। इसके लिए हमने हजारों मिट्टी के घोंसले तैयार करवाए, ताकि सुरक्षित जगह गौरैया अपने घोंसले बना सके। इसका असर ये हुआ कि कस्बे में अब हर घर में गौरैया का भी एक घर है। अब तक हम समूर्ण राजस्थान के सात-आठ जिलों में 4 हजार से अधिक घोंसले आम लोगों को उपलब्ध करा चुके हैं। इन घोंसलों में गौरेया के अंडे व बच्चे सुरक्षित रहने लगे हैं।
स्वामी ने बताया कि गौरेया हमारे घर आंगन की शोभा होती है। इसके अलावा हमारे आसपास के वातावरण को बेहतर बनाने में भी इसकी अहम भूमिका होती है। गौरैया फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले खरनाक कीटों को खा जाती है। यह बारिश में दिखाई देने वाले कीड़े भी खाती है। इस प्रकार से वह किसानों को मदद तो पहुंचाती ही है, साथ ही कीटों को खाकर भी वातावरण को सुरक्षित करती है।
इस चिडिय़ा का मूल स्थान एशिया और यूरोप का मध्य क्षेत्र माना जाता है। मानव के साथ रहने की आदी ये गौरैया मानव सभ्यता के विकास के साथ-साथ दक्षिण अमरीका, दक्षिण अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड तक पहुंच गई है। इनकी तेजी से घटती आबादी को देखते हुए इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर ने 2002 में इसे लुप्तप्राय प्रजातियों में शामिल कर लिया है।
