मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कल धौलपुर में मानेसर प्रकरण पर ‘विस्फोटक’ बयान देकर स्पष्ट तौर पर तो सचिन पायलट को घेरा है, लेकिन वसुधंरा राजे, कैलाश मेघवाल और शोभा रानी कुशवाहा आदि भाजपा नेताओं को संकटमोचक बताकर कांग्रेस आलाकमान को भी अहम संदेश दिया है। संदेश ये कि राजस्थान से उन्हें हटाने की कोशिश यदि की जाती है तो उनके पास कुर्सी बचाने के अन्य विकल्प भी हैं। लिहाजा उनके बिना प्रदेश में कांग्रेस राज की कोशिश आलाकमान को भारी प़ड़ सकती है।
राजस्थान में गहलोत और वसुंधरा राजे भले ही एक दूसरे के राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी हों, लेकिन राजनीतिक शत्रुता के बावजूद दोनों एक-दूसरे के लिए मददगार भी बनते रहे हैं। इसका पुख्ता उदाहरण वसुंधरा का जयपुर के सिविल लाइन्स क्षेत्र में 13 नंबर का सरकारी बंगला है। इस बंगले से वसुंधरा को हटाने के लिए हाईकोर्ट तक लोग गए हैं, लेकिन गहलोत ने बंगले को विधानसभा के अधीन करके वसुंधरा के संकट को बड़ी चालाकी से टाला है। इसी प्रकार पिछली भाजपा सरकार के समय कथित भ्रष्टाचार की जांच न करा कर गहलोत ने पूर्व मुख्यमंत्री को बचाने में कसर नहीं छोड़ी है। पायलट इसी मुद्दे पर अनशन तक पर बैठ चुके हैं। आगे भी इसे लेकर लगातार बयानबाजी कर रहे हैं।
गहलोत राजस्थान में अपनी सक्रियता कम करने के मूड में कतई नहीं दिखते हैं। उनकी इस चाहत में सचिन पायलट सबसे बड़े कांटे साबित हुए हैं। उन्होंने 2020 में बगावत से लेकर आज तक अपनी गतिविधियों और बयानबाजी से गहलोत को असहज कर रखा है। इसीलिए गहलोत अक्सर पायलट के खिलाफ कड़वे बोल निकालते रहते हैं। यहां तककि कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व से उन्होंने पायलट की कई बार शिकायत की है। फिर भी आलाकमान पायलट को लेकर शुरू से ही नरम रुख अपनाए हुए है। पिछले साल कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव से पहले राजस्थान में पायलट की ताजपोशी की कोशिश को गहलोत ने साथी विधायकों की मदद से विफल कराया था, जिससे यह तो साफ हो गया है कि गहलोत अब गांधी परिवार के भरोसेमंद नहीं रहे। कांग्रेस में बदले माहौल को भांप कर ही गहलोत ने अब वसुंधरा, मेघवाल औऱ शोभारानी को उनकी सरकार बचाने का श्रेय देकर एक तीर से कई निशाने साधे हैं। इनमें कांग्रेस नेतृत्व को आगाह करना भी शामिल है। ताकि उनको राजस्थान से दूर करने की कोशिश न की जाए। वरना वो अपनी सियासी धरा पर जमे रहने के औऱ भी विकल्प आजमा सकते हैं।
